ग़ज़ल
प्यार में आँखों से कुछ दिखता कहाँ है दोस्तो
प्यार का पर्दा सा इक रहता जवाँ है दोस्तो
प्यार तो रब की इबादत, गुलसितां है दोस्तो
प्यार से पुरनूर ये सारा समां है दोस्तो
बस उन्हीं की याद से दिल बाग़बां है दोस्तो
उनके जल्वों की ग़ज़ल दिल में निहाँ है दोस्तो
दास्ताने- ‘लैला- मजनू’, शीरीं-ओ-फ़र्हाद की,
प्यार का दुश्मन सदा रहता जहाँ है दोस्तो
प्यार का मेरे, सिला, कुछ यूँ दिया है यार ने
ज़ख़्मे-दिल में दर्द का दरिया रवाँ है दोस्तो
राहे-उल्फ़त में चलें कैसे सम्भल कर ‘भान’ अब
अक्स उनके हुस्न का पैबस्ते-जाँ है दोस्तो
‘भान’ सब अनजान हैं उस मंजिले- मक़्सूद से
चल रहा फिर भी मुसलसल कारवां है दोस्तो
— उदय भान पाण्डेय ‘भान’