नव-बरस आते ही रहना/नवगीत
नव-बरस आते ही रहना
हम सदा स्वागत
करेंगे।
तुम अगर क्रम तोड़ दोगे
काल चलना छोड़ देगा।
देख मुरझाई कली को
मुख भ्रमर भी मोड़ लेगा।
किस तरह हम मीत, रसमय-
प्रीत जीवन में
भरेंगे?
गेह निज आने प्रवासी
साल भर करते प्रतीक्षा।
बेरहम बन कर न लेना
माँ-पिता की तुम परीक्षा।
तुम न आए तो बताओ
धैर्य कैसे वे
धरेंगे?
देख लो कोहरा छंटा है
मुग्ध जीवन मुस्कुराया।
सूर्य मंगल-कामना से
अंजुरी भर धूप लाया।
आस इतनी हर हृदय में
है नए दिन तम
हरेंगे।
-कल्पना रामानी