कविता : बढ़ जाती है
सूरज का ना निकलना
उपर से हाड कँपाने वाली ठन्ड
बढ़ जाती है मेरी चिन्ता
चूल्हे का सूना सूनापन
उपर से हान्डी मे चून भी शून्य
बढ जाती है चिन्ता
घर में अब नहीं है पानी
क्या होगी गरीब की कहानी
बढ जाती है चिन्ता
लालाजी का मोटा सा पेट
उस पर पहने मोटा सा कोट
बढ जाती है चिन्ता
लाला की जेब में पडे है मोटे नोट
लगाते है रोज नये गददे पर लोट
मेरी चिन्ता बढ जाती है
— डॉ मधु त्रिवेदी
गरीब की झौंपडी में एक झाँक !
गरीब की झौंपडी में एक झाँक !
सुंदर रचना