कविता

कविता : वक्त…

माना मुट्ठी से रेत की तरह फिसलता जाता है यह वक्त !
चाहकर भी कोई नहीं वापिस पा सकता है गुज़रा वक्त !
वो बाते अतीत की वो अल्हड़पन के किस्सो से भरा वक्त !
वो बेफिक्र सा पल में हँसता पल में रोता बचपन का वक्त !
अपने उसूलों पे अपनी अलग पहचान लिए बड़ता जाता वक्त !
न किसी भेदभाव से न कोई मतभेद सबके लिए है एक सा वक्त !!!

— कामनी गुप्ता, जम्मू

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |