ग़ज़ल
आँसू छलक पड़े दुखी संसार देखकर
मजहब के नाम पर उठी दीवार देखकर
कल तक दुआएं मांगते थे मेरे लिए जो
वो हाल तक न पूछते बीमार देखकर ।
मुझको जनून था कि जहाँ भर को जीत लूँ
रोये थे अपनी जीत में भी हार देखकर
मुड़ मुड़ के देखते थे मुझे रोक लोगे तुम
मायूस ही हुआ तुम्हें हर बार देखकर ।
गुजरे कभी थे हुस्न की रंगीन गली से
नफरत है होती अब हमें ये प्यार देखकर
— धर्म पाण्डेय
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल – मुबारक
कविता अच्छी लगी .
कविता अच्छी लगी .