ताटंक छंद
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चंचल चितवन श्याम सलोने, केशो को लहराती है।
तन-बदन में जैसे मेरे, कौंध बिजलियाँ जाती है।।
सर से नख तक की सुंदरता, मनमोहक मुख वो तेरा।
आलिंगन को तरसूँ ऐसे, बाहें भरने को घेरा।।
होठों की लाली हो जैसे, कमल पाँखुरी मुस्काती।
भेद सिंधु से मन को मेरे, अन्तःमन ठौर वो पाती।।
नैनों के गहरे सागर में, मन मेरा डुबकी खाता।
प्यासा मन बस यही पुकारे, डूब चला है वो जाता।।
गुंजन अग्रवाल
बहुत बढिया .