कविता

कविता : ये कैसी चली लड़ाई है

आतंकवाद के नाम पर, ये कैसी चली लड़ाई है
जुर्रत-ए-जंग में कहीं न कहीं खुदगर्जी समाई है।

हथियारों के होड़ में केवल बर्चस्व की लड़ाई है
एक ओर  इस्लाम खड़ा है  छोर दूसरे  ईसाई है
दोनों  राग अलापें  खुद के  मैं बडा  तो  मैं बडा
आतंकवाद के समर क्षेत्र में मानवता शरमाई है।

धर्म नहीं ईमान नहीं इंसानियत भी नहीं कहीं से
सब कुछ लुटा होता शुरु बहशीपना भी यहीं से
आँखें  फाड़ – फाड़ रोते रहे  जंगली जानवर भी
इंसानियत अब आदमी में  है नहीं आज कहीं से।

हैवानियत की अब और कबतक बजेगी शहनाई
आतंकवाद के नाम पे देखो  कैसी चली लड़ाई है।

— श्याम स्नेही

श्याम स्नेही

श्री श्याम "स्नेही" हिंदी के कई सम्मानों से विभुषित हो चुके हैं| हरियाणा हिंदी सेवी सम्मान और फणीश्वर नाथ रेणु सम्मान के अलावे और भी कई सम्मानों के अलावे देश के कई प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुति से प्रतिष्ठा अर्जित की है अध्यात्म, राष्ट्र प्रेम और वर्तमान राजनीतिक एवं सामाजिक परिस्थितियों पर इनकी पैनी नजर से लेख और कई कविताएँ प्रकाशित हो चुकी है | 502/से-10ए, गुरुग्राम, हरियाणा। 9990745436 ईमेल[email protected]