कविता
तन्हा नहीं हूँ मैं, तन्हाइयों की कसम,
लोग मुझे तन्हा समझते हैं
खोया रहता हूँ तेरी याद मे, यादों की कसम,
हर पल तुम्हे याद किया करते हैं
देखता हूँ ख्वाब तुम्हे पाने के, ख्वाबों की कसम,
मेरे दोस्त मुझे दीवाना कहते हैं
देखे थे अश्क एक बार तेरी आँखों मे, अश्कों की कसम,
उन अश्कों मे खुद को डुबोना चाहता हूँ
सोता नहीं हूँ रात भर, तारों की कसम,
तारों मे तुझे खोजा करता हूँ
क्या पता कहाँ, किस हाल मे मिल जाओ, चाहत की कसम,
मैं आँख खुली रख कर ही सोया करता हूँ।
— डॉ अ कीर्तिवर्धन
बहुत खूब !