मुक्तक ,
बनाए फौज हिटलर की नहीं दुनियाँ झलकती है
बिखेरे खौफ, के बादल कहाँ खुशियाँ सरकती है
लगाए आँख में सुरमा खुद सूरमा समझने में
बिछाए मौत के चादर जहाँ हरदम लपकती है
नज़ारे देखते सावन भटकते मेघ जाते हैं
बिछाये प्रेम की चादर चमकने चाँद आते हैं
बताएँ राज को कैसे बिताए वक्त हैं कैसे
लगाए आँख में काजल तड़पते प्रेम पाते हैं