ग़ज़ल
साफ नीयत जनाब रखना,
नज़र कभी ना खराब रखना
अच्छा है पैर हों ज़मीं पर,
मगर निगाहों में ख्वाब रखना
हो गुनगुनी धूप सी मुस्कुराहट,
और आँसूओं में सैलाब रखना
दरिया में नेकियां डाल देना,
गुनाहों का पर हिसाब रखना
दिखाना है हश्र में मुँह खुदा को,
कमा के थोड़ा सबाब रखना
हों लाख कांटे अदावतों के,
पर मुहब्बतों को गुलाब रखना
अभी पढ़ेगा इसे ज़माना,
साफ दिल की किताब रखना
— भरत मल्होत्रा
दरिया में नेकियां डाल देना,
गुनाहों का पर हिसाब रखना बहुत खूब .