सियासी चाल है ये,अपना पेट भरने का
चुनावी वायदे करके सदा मुकरने का
सियासी चाल है ये,अपना पेट भरने का
वो ज़िन्दगी का कभी लुत्फ़ ना उठा पाया
है ख़ौफ़ हद से ज़ियादा जिसे भी मरने का
नदी, पहाड़, भँवर रास्ते-से लगते हैं
हो जज़्बा दिल में अगर कुछ भी कर गुजरने का
बही गुनाहों की कुछ तो ज़रूर सिमटेगी
न छोड़ मौका कभी नेक काम करने का
गँवारा इसको नहीं एक पल ठहर जाना
ये मेरी ज़िन्दगी है या है पानी झरने का
अब उनकी झील-सी आँखों में ‘जय’ नहीं बसता
तमाशा ख़त्म हुआ डूबने उभरने का
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-जयनित
अछे विचार ,चुनावी वायदे करके सदा मुकरने कासियासी चाल है ये,अपना पेट भरने का