ग़ज़ल
बेटियों को मुझे पढ़ाने दो।
और दीपक मुझे जलाने दो।
बाग में कम न हो कहीं खुश्बू,
कुछ और फूल खिलाने दो।
दिल हमारा जवाब दे बैठा,
दर्द को और अब ठिकाने दो।
दोस्त अब मिरे घर न आएँगे,
फोन दो फेसबुक चलाने दो।
राह तकते ख़तम हुईं साँसें
और कुछ देर आज़माने दो।
-प्रवीण श्रीवास्तव ‘प्रसून’
फतेहपुर उ.प्र.
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