तुम बिन ये जीवन क्या जीवन…
तुम बिन ये जीवन क्या जीवन, बिखरा सा घर सूना आंगन।
हर पल तन्हाई का आलम, उतरा चेहरा डूबा सा मन॥
खामोशी की चादर ओढे, सोया है जैसे हर कोना।
जीवन लगता है जैसे हो, बिन चाबी का कोई खिलौना॥
हर सुबहा अलसाई सी है, बीते शाम सिन्दूरी बे मन…
हर पल तन्हाई का आलम, उतरा चेहरा डूबा सा मन…
प्यार की मीठी नोक झोंक बिन, जीवन में उल्लास कहां।
बिन तेरे बेअर्थ सा जीवन, हास और परिहास कहां॥
कुछ दिन में अहसास हो गया, तुम बिन ये जीवन क्या जीवन….
हर पल तन्हाई का आलम, उतरा चेहरा डूबा सा मन……
होते हो जब पास, कहां आभास खास ये होता है।
सब सामान्य सा लगता है जो होता है सो होता है॥
तुम हो तो जीवन मधुबन है, बिना तुम्हारे उजडा उपवन……
हर पल तन्हाई का आलम, उतरा चेहरा डूबा सा मन……
सतीश बंसल