कविता

कविता – जाने क्यो

ना जाने क्यो
मन अनमना सा है
उतर रहा है
भीतर तक सन्नाटा
कुछ मायुसी
बुन रही हुं बेवजह के
ताने-बाने
बे सिर- पैर के
ख्याल
ना जाने कैसी एक
गांठ खोलने मे
उलझी सी मै
ना खुश हुं ना उदास
ना उमंग ना कोई आस
अंजाने ही
बैरागी सी मै
ढुंढ रही हु कोई मकसद
कोई रौशनी
कोई रास्ता
एक ऐसी दुनिया
जहां तुम हो
जहां सुकून हो ।

© साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)

One thought on “कविता – जाने क्यो

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कविता अच्छी लगी , साधना जी ,साहित्कार भावुक ही तो होते हैं .

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