कविता : हे पडोसी मुल्क
हे पडोसी मुल्क
किस गरूर में चूर रहते हो तुम
आये दिन कर बैठते हो
कोई नया ही दुसाहस
कभी सीमा पर उपद्रब
या फिर सैन्य ठिकानों पर हमला
तो कभी भेज देते हो
कसाब और नावेद
जैसे नौजवानों को
आतंकियों के भेष में
धर्म के नाम पर बर्गला कर l
हर बार ही तो मात खा चुके हो
पैंसठ , इकहतर और फिर निन्यानवे
किस जिद पर अड़े हो
क्यूँ निज अस्तित्व को ही
खाक में मिलाने के लिए तुले हो ?
रक्त – रंजित मत करो
दो जुदा हुए भाइयों के खून को
ये देश कभी तुम्हारा भी था
विचार करो
बंटवारे से पहले
कितना भाईचारा भी था
अपने संसाधनों का सदुपयोग कर
उन्नत करो अपने राष्ट्र को
आतंकवाद का कहाँ होता है
कोई मजहब
रोक दो तुम
आतंक की फसल के बीज बोकर
इसे पोषित करना
ताकि वैश्विक स्तर पर
निर्मल हो छवि तुम्हारी
हो जाओ पाक यथार्थ में भी
और चरितार्थ करो
अपने नाम के अर्थ को l
अमन और शांति है
मानवता का सन्देश
खिलौनों की जगह
मत थमाओ बंदूके उन हाथों में
जो हैं कर्णधार और भविष्य
तुम्हारे राष्ट्र के l
न लो परीक्षा हमारे सयंम की
बक्त रहते तोड़ दो दीवारें
नफरतों की
और करो आगाज
एक नई शुरुआत के लिए l
— मनोज चौहान
(पठानकोट के एयर बेस पर 02 जनवरी , 2016 को हुए आतंकी हमले पर प्रतिक्रिया स्वरुप लिखी गई रचना )
यह लोग कभी नहीं सुधरेंगे ,हमें ही बदलना होगा .
जी सर एकदम सही कहा आपने …मगर संभावनाएं तो तलाशनी ही होंगी …!