कविता

एक और पग मजबूती के साथ

कहाँ पता था
चलते हुए यूँ अकेले
पैरों में छाले पड़ जायेंगे
कई उँगलियाँ उठेगी
कई भौवें भी तनेगी
हर एक कदम पर
उठेंगे सवाल
कईयों के अहम् पर चोट पड़ेगी
और मैं
हर संघर्ष के बाद
और भी बन जाउंगी दुघर्ष
कहाँ पता था
क्योंकि छाले अब तकलीफ नहीं देते हैं
हर दर्द के साथ
मेरे होठों पर दे जाते हैं मुस्कान
जेठ अब जलाती नहीं
पसीने की हर बूंद चेहरे की चमक बढ़ा देते हैं
और मैं चल पडती हूँ
एक और पग मजबूती के साथ !

महिमा श्री 

महिमा श्री

नाम :-महिमाश्री शिक्षा :- एम.सी.ए , पटना, बिहार लेखन विधाएँ :- अतुकांत कविताएँ, ग़ज़ल, दोहें, कहानी, यात्रा- वृतांत, सामाजिक विषयों पर आलेख , समीक्षा साहित्यिक गतिविघियाँ- एकल काव्य संग्रह- “अकुलाहटें मेरे मन की” साझा काव्य संकलन “त्रिसुन्गंधी” , “परों को खोलते हुए-१”, “ सारांश समय का” , “काव्य सुगंध -2”, देश के विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित, मासिक ई- पत्रिका शब्द व्यंजना में संपादन तथा अंतर्जाल और गोष्ठीयों में साहित्य सक्रियता। सम्प्रति :पब्लिक सेक्टर में सात साल काम करने के बाद (मार्च २००७-अगस्त २०१४) वर्तमान में स्वतंत्र लेखन, पत्रकारिता , नई दिल्ली मोबाइल :- 9910225441 ईमेल:- mahima.rani@gmail.com Blogs:www.mahimashree.blogspots.com

One thought on “एक और पग मजबूती के साथ

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब ! बढिया .

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