गीत
एक बार फिर मक्कारो ने
आज हमे ललकारा है
जाग उठो भारत के बेटो
माँ ने तुम्हे पुकारा है
जाकर कह दो बेईमानो से
जो हमसे आँख मिलाओगे
आलू-से छीले जाओगे
मूली-से काटे जाओगे।
इस गुलशन का पत्ता-पत्ता
अब शोला इक बन जाएगा
आज़ाद-भगत-सुभाष-बिस्मिल
के रंगो मे ढल जाएगा
हर बाला के यौवन से अब
लक्ष्मीबाई हुङ्कारेगी
वीरो के तन का हर कतरा
अब एटम बम बन जाएगा
अरे मत लाँघो तुम मर्यादा
वरना माटी हो जाओगे।
आलू-से छीले…
हम फूल बढाकर मित्रो की
पीठ मे वार नही करते
मतलब की खातिर अपनो के
दामन से प्यार नही करते
लुक छिपकर नर-संहार करे
वो तुम-से हम नामर्द नही
हम घुसकर आग लगाते है
छिपकर संग्राम नही करते
गर दहकी जो ये चिङ्गारी
भुट्टो-से भूने जाओगे
आलू-से छीले…
अपनी धरती प्यारी हमको
इतिहास हमारा कहता है
बकवास हमारे वचन नही
कुरआन हमारी गीता है
हम बरसाती नाले नही
जो अपने तट को छोड़ेगे
हम मे सागर की गहराई
जो अपनी हद मे रहता है
सरहद पर नज़र उठाई तो
कई टुकड़ो मे बँट जाओगे
आलू-से छीले जाओगे
मूली-से काटे छाओगे।
— शरद सुनेरी
कविता अच्छी लगी , लेकिन यह जवाब तो रक्षा मंत्रालय ही दे सकता है .हम तो चाहते हैं कि उन के घर में जा कर उन को मारो लेकिन हम इस में किया कर सकते हैं .