कश्ती भी नहीं बदली, बदला नहीं दरिया।
कश्ती भी नहीं बदली, बदला नहीं दरिया।
जज्बा भी नहीं बदला, हम डुबते रहे यहाँ।
बने रहे मुसाफिर, हम सदा चलते रहे यहाँ।
ठांव के चक्कर में, कुछ बुनते रहे यहाँ।
मंजिल भी नहीं पाई, नहीं बदला सफर यहाँ।
करता रहा तलाश, हरदम चलता रहा यहाँ।
राही सफर का बन गया, सब बदलता गया यहाँ।
किया रोकने का प्रयास, असफल होता गया यहाँ।
अनबूझ बनी पहेली, बुझता रहा यहाँ।
कश्ती भी नहीं बदली, बदला नहीं दरिया।
••••••••रमेश कुमार सिंह /२७-०९-२०१५••••