सामाजिक

मैं तुलसी तेरे आँगन की

एक दिन अचानक टी वि पर आशा पारेख अभिनीत फिल्म में तुलसी तेरे आँगन की आ रही थी,आशा पारेख गा रही थी” में तुलसी तेरे आँगन की “गाना सुनते सुनते मेरा ध्यान न जाने केसे हमारे पुराने पुश्तेनी मकान की यादो में खो गया -फिल्म निदेशक ने तो न जाने क्या सोच कर फिल्म का ये नाम रखा होगा ,मगर मेरा ध्यान तो सचमुच पुराने ग्हर और आँगन जिसके बीचो बीच तुलसी चोरा था, उसी पर अटक गया ,एक बड़ा सा आँगन पहले लगभग सभी घरो में हुवा करता था ,और बीच में तुलसी चोरा ,!सवेरे सवेरे दादी और माँ नहा धोकर गिले बालो से पूजा की थाली सजा कर तुलसी मैया की पूजा करती , जल सींच कर दीपक जला ग्हर की सुख समर्धि की ,सुख शांति ,और परिवार के सदस्यों के दीर्घायु होने की कामना करती परिकर्मा करती थी !

आज फ्लेट संस्केरती के कारन ग्हर से आँगन तो गायब ही हो गया छोटे छोटे फ्लेट्स जो २-३ शयन कक्छ के साथ जो थोड़ी सी जगह बीच में छोड़ते हे उसे भोजन कक्छ या डाइनिंग स्पेस का नाम दे देते हे एक के उपर एक अनेक मंजिले ही मंजिले ,इस बहु मंजिला संस्केरती के कारन घरो से आँगन तो गायब ही हो गये तो फिर तुलसी……पहले ज़माने में कहते थे आँगन बिना ग्हर की कल्पना भी अधूरी हे आँगन उपर से खुला होता था ,ग्हर के सरे शुभ और अशुभ कार्य आँगन में ही संपन्न होते थे ,ग्हर बनवाते फिर लड़की कन्या की शादी करते आँगन में मंडप बनता आँगन का भी लड़की शादी के साथ क्वारपन उतरता ,अन्य कोई पूजन यग्य ,यज्ञोपवित मुंडन संस्कार सब शुभ कार्य आँगन में ही संपन्न होते ,

न केवल शुभ कार्य वेर्न मेर्नोप्रांत बुजुर्गो के पर ग्हर के आँगन में ही पसारते,ऐसी उनकी इछा धारणा रहती थी१घेर की बुजुर्ग ओरते आँगन में धुप सेकना चुनना बिनना करती और बुजुर्ग नाती पोतो को पढ़ना ,अपने संगी साथियों के संग ताश खेलना गप शप करना ,आब तो घरो में न आँगन रहे न शादिया घरो में होती हे शादिया भवनों में मंडप बाग में सजता हे ,ग्हर में न जगह हे न करने का मन ग्हर गन्दा जो हो जायेगा और फिर जगह का भी अभाव ,!

आँगन में ही एक कोने में घट्टीरोपी हुई होती थी सवेरे सवेरे दादी अम्मा घट्टी पिसते पिसते भजन गति थी घट्टी की घुर घुर और दादी माँ का स्वर मिलकर अनोखे संगीत की गूँज सुने देती थी जो कानो से होकर सीधे दिल में उतेरती जाती थी !
पहले दादी दादाजी को ताजा आटा पीस कर रोटी बना कर खिलाती थी अब तो घर में घट्टी होना ही अशुभ मानते हे जिस घट्टी को देख कर कवी कबीर ने कहा था :-चलती चक्की देख कर दिया कबीरा रोय
दोय पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय !

अगेर किसी घर में भूले न भटके चक्की पड़ी भी हे तो तो वो अपनी दुर्दशा पर खुद ही आंसू बहती होगी दादी अम्मा कहती थी की गर्भवती स्त्री चक्की पिसे तो पेर्सव पीड़ा कम होती हे जचा बचा दोनों सवस्थ्य रहते हे पर अब तो गर्भवती को शुरुवात से ही चिकित्सक बेडरेस्ट दे देते हे और नब्बे% डिलीवरी ओपरेशन से संपन्न होती हे १चक्कि चलने की नकल अब श्री श्री रवि शंकर जी के कहने से योगाभ्यास में करते हे और तुलसी चोरा तो अब गुजरे जमाने की यद् बहर रह गये हे तुलसी ग्हर में होना बहुत शुभ मन जाता था घर का पेरयावेर्ण शुद्ध होजाता था छोटी मोती हरी बीमारी में दादी माँ का नुस्खा तुलसी पत्ते की चाय पिलावो बुखार भगावोछोटे छोटे मकानों में बहु मंजिला इमारतो में आँगन की कल्पना करना ही हास्यास्पद हे आने वाली पीढ़ी तो आँगन शब्द का मतलब भी नही समझेगी ,फिर तुलसी चोरा …….हा चोरे का स्थान गमले ने ले लिया हे मगेर सूरज की रौशनी के आभाव और स्थानाभाव में वो बात कहा और फिर गमला तो छोटी सी बालकनी की शोभा बढ़ाता हे उसमे आँगन वाली बात कहा ?…………….

गीता पुरोहित

गीता पुरोहित

शिक्षा - हिंदी में एम् ए. तथा पत्रकारिता में डिप्लोमा. सूचना एवं पब्लिक रिलेशन ऑफिस से अवकाशप्राप्त,