गीत
मेरी कहाँ जरूरत किसको, मैं तो बहता दरिया हूँ ।
जो चाहे बस प्यास बुझा ले, सस्ती एक गगरिया हूँ ।।
सबने अपने दाग छुड़ाये, मुझको तनहा छोड़ दिया…
अपने मन की नीच गली से, मेरा नाता जोड़ दिया…।
जिस पर लाखों दाग लगे हैं, ऐसी एक चुनरिया हूँ….
मेरी कहाँ………..।।
सत का गीत सुनाता फिरता, झूँठी दुनियादारी में…
सब हँसते हैं मैं भी खुस हूँ, अपनी इस बेकारी में …।
जिसको सबने ठुकराया है, सच की एक नगरिया हूँ……
मेरी कहाँ……………।।
जब तारों को पड़ी जरूरत, छोड़ दिया आकाश घना…
लाचारी के घोर तिमिर में, मैं मतवाला खूब जला….।
आज उजालों ने समझाया, मैं तो केवल जरिया हूँ…..
मेरी कहाँ जरूरत किसको…….।।
राजनीति के दांव के आगे, मैंने घुटने टेक दिए….?
खुद्दारी में सहनशीलता, वाले मोती फेंक दिए ।
सम्बिधान की हरियाली में, मैं केवल केसरिया हूँ……
मेरी कहाँ जरूरत किसको………….।।
— राहुल द्विवेदी ‘स्मित’