कविता

मेरे विर शहीद..

अभी बीता था कुछ ही पल
अपने सजनी के संग
देकर आशा निकले थे
आयेंगे शीघ्र तेरे पास
अभी जा रहे हैं
देश की रक्षा करने
उस मॉ का कर्ज अदा करने
जिसने गर्व की है अपनी लाल पर
उन्हे क्या पता था कि
दुश्मन घात लगायें बैठे हैं
मेरे ही इंतजार में
उसने भी न हार माना
आखिरी सॉस तक लडते रहा
ऑच न आने दिया
अपने मॉ के कोख पर
उधर सुनी पडी थी
हाथो की मेहँदी
उस पिया के आस में
जो वादा कर गयें थे
वो तो मुख मोड चले
देश की शान में|
निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४