संस्मरण

वैज्ञानिक डा. आई.बी. गुलाटी जी विषयक कुछ स्मृतियां

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श्रद्धांजलि (मृत्यु : 6 जनवरी, 2016)

श्री आर0के0 गुप्ता, एम0डी0, औद्योगिक विकास सेवा प्रा. लि. नई दिल्ली की आईआईपी के पूर्व निदेशक डा. टी.एस.आर. प्रसादराव को 6 जनवरी, 2016 की इमेल से ज्ञात हुआ कि आई0आई0पी0 के पूर्व निदेशक डा. आई0बी0  गुलाटी (डा. इन्द्र भूषण गुलाटी) का प्रातः दिल्ली में निधन  हो गया है।

इस समाचार को पढ़कर हमें दुःख हुआ और उनकी कुछ स्मृतियां ताजा हो गईं। हमने आई0आई0पी0 में 28 जनवरी. 1978 से सेवा आरम्भ करके सेवानिवृति 31 जुलाई, 2012 तक कार्य किया है। हमारी पहली नियुक्ति दिसम्बर, 1977 के अन्तिम दिनों में स्वर्गीय डा. आई0बी0 गुलाटी जी के करकमलों से ही हुई थी। इस नियुक्ति के बाद लगभग 8 वर्षों तक उनके नेतृत्व में ही हमने कार्य किया। इस समयावधि की हमारी कुछ स्मृतियां उनसे जुड़ी हुई हैं जिन्हें आज उनके वियोग के अवसर पर श्रद्धांजलि रूप में हम संकलित कर रहे हैं।

शायद पहली बार आई0आई0पी0 के कन्फरेन्स कक्ष में उनके दर्शन तब हुए थे जब फरवरी, 1979 में संस्थान में चल रही कर्मचारियों की हड़ताल के दिनों हड़ताल में सम्मिलित न होने वाले प्रशासनिक कर्मचारी उनसे मिले थे। उन्होंने हमारे प्रतिनिधि अधिकारियों की बातें बड़े ध्यान से सुनी थी और संस्थान में अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए धन्यवाद किया था। उस अवसर पर हमने उन्हें बहुत ही संयमित व मितभाषी पाया था और उन्होंने संस्थान में हड़ताल होने, उन पर अनुचित दोषारोपण व अपशब्दों का प्रयोग करने पर भी उसका उल्लेख तक नहीं किया था।

विश्व प्रसिद्ध भारतीय पेट्रोलियम संस्थान के शीर्षस्थ अधिकारी, प्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं हमारे नियोक्ता होने के कारण उनसे मिलकर हमें अच्छा लगा था क्योंकि इससे पूर्व के जीवन में हम इस प्रकार के व्यक्तियों से न के बराबर ही मिले थे। इस मीटिंग में संस्थान के प्रशासनिक अधिकारी श्री किशनलाल, हमारे लेखानुभाग के अधिकारी श्री प्रतापसिंह ग्रोवर व प्रशासन के अन्य अधिकारियों सहित हमारे प्रमुख साथी श्री शान्तिस्वरूप स्याल, श्री कैलाश बिहारी माथुर, श्री गोपीनाथ कौल, श्री ओम्प्रकाश धाम, श्री रमेश चन्द्र, श्रीमति प्रकाशरानी पूरी तथा श्री सुरेन्द्र कुमार रावत आदि उपस्थित थे। यह भी बता दें कि इस बैठक के समय तक हमें संस्थान में नियुक्त हुए कुछ ही दिन हुए थे।

हम आईआईपी ने नये-नये ही थे कि एक दिन वह सायं के समय देहरादून के बस अड़डे पर मिल गये थे। शायद वह अपने किसी परिवारजन के वहां आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। हमने उन्हें पहचान लिया और उनके निकट जाकर नमस्ते की। वहां कुछ अन्धकार था, अतः उन्होंने बहुत स्नेह के साथ हमारा हाथ पकड़कर एक निकट ही प्रकाश वाले स्थान पर ले गये और हमारा चेहरा देख कर बोले कि अब मैंने आपको पहचान लिया है। आप आईआईपी में लेखानुभाग में काम करते हैं। यह कुछ क्षणों की भेंट भी अपनी स्थाई स्मृति छोड़ गई। इसका महत्व यही है कि उन्होंने उस समय बड़ा स्नेह प्रदशित किया था जो कि उनके समान पदाधिकारियों में बहुत कम ही देखने को मिलता है।

आईआईपी में नियुक्त होने पर कुछ ही दिनों में हमारा परिचय वहां इंजिन लैब में काम करने वाले फाइन मैकेनिक श्री चन्द्र दत्त शर्मा जी से हो गया। शर्माजी शास्त्रीजी के नाम से विख्यात थे और उनके चिन्तन व व्याख्यान शैली के लोग कायल थे। हमारे एक अन्य मित्र श्री ओम्प्रकाश गैरोला हमारे साथ ही नियुक्त हुए थे। उनमें तभी से लेखन की प्रतिभा थी। उनसे भी हमारी निकटता बढ़ी और हमने वहां एक ‘वेद प्रचार समिति, आईआईपी’ की स्थापना कर दी थी। इस समिति के अन्तर्गत संस्थान में अनेक धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयेाजन किया गया था। ऐसा ही एक कार्यक्रम ‘‘वेद एवं योग प्रशिक्षण शिविर” था जो एक सप्ताह तक चला था। यह कार्यक्रम स्वामी सोम्बुद्धानन्द सरस्वती के निर्देशन में चला। प्रातः 5.00 बजे से पहले पुरूषों के लिए व इसके एक घण्टे बाद स्त्रियों के लिये योग प्रशिक्षण शिविर चलता था।

सायं 7-30 बजे से स्वामीजी के वेदों पर प्रवचन होते थे। इस कार्यक्रम में भी डा. गुलाटी नियमित रूप से भाग लेते थे और उनकी धर्मपत्नी श्री मति निर्मल गुलाटी भी सोत्साह भाग लेती थी। यहां यह भी बता दें कि संस्थान में ही वैदिक साधन आश्रम, तपोवन, नालापानी से जुड़े हमारे एक साथी श्री सतपाल जी यहां के विद्युत सब स्टेशन में काम करते थे। वह डा. गुलाटी के काफी निकट थे और हमारे सभी वैदिक विचारधारा सम्बन्धी सन्देश उन तक पहुंचा देते थे। वह आग्रह करके डा. गुलाटी व उनकी धर्मपत्नी जी को तो योग शिविर के आयोजन में लाये ही थे, इसके साथ ही श्री सतपाल जी ने हमारे निवेदन पर श्रीमति डा. गुलाटी को आर्यसमाज की साप्ताहिक पत्रिका ‘आर्यजगत’ का वार्षिक ग्राहक भी बनाया था। श्री सत्यपाल जी के द्वारा ही हमने उन्हें कुछ वैदिक साहित्य भी भिजवाया था जिसमें श्री वीरसेन वेदश्रमी, इन्दौर की एक अंग्रेजी पुस्तक ‘‘यज्ञ द्वारा वायु प्रदुषण का समाधान और अन्य समस्याओं के हल” को उन तक पहुंचाया था।

आईआईपी में नियुक्ति के बाद एक बार लेखा अनुभाग के कमरे का कुछ रिकार्ड अग्नि के ताप से झुलस गया था। घटना इस प्रकार थी कि शनिवार को अवकाश के दिन कुछ व्यक्ति वहां काम करने आये थे। सर्दियों के दिन थे। सायं छुट्टी के समय विद्युत न होने के कारण लाइट नहीं थी। हमारे साथियों ने लाइट तो बन्द कर दी थी परन्तु एक हीटर बन्द करना याद नहीं रहा था। अगला दिन रविवार का अवकाश था। वह हीटर एक लकड़ी की मेज के साथ सटा कर रखा हुआ था। 24 घंटे से अधिक समय तक वह मेज को तपिश देता रहा जिससे उसकी लकड़ी सुलगने लगी थी। सोमवार को जब आये तो ज्ञात हुआ कि हीटर की गर्मी से मेज का कुछ भाग झुलस गया था और कुछ कागजात भी झुलसने से खराब हो गये थे। अधिक क्षति इस कारण नहीं हुई कि कमरे में घुंआ भरने पर सेकुरिटी स्टाफ देख लिया और कमरा खोलकर उस अग्नि को बुझा दिया था। इसके घटना के बाद एक दिन डा. गुलाटी कमरे में आये और वहां धुएं से छत पर आई कालिमा को देखकर बोले कि ‘It looks like a kitchen’. उन्होंने कमरे को पेण्ट कराने की हिदायत दी और चले गये थे। आज भी वह स्मृति ताजा है। यह हानि अनचाहे असावधानी में हो गई थी, अतः उन्होंने इसके लिए किसी को दण्डित नहीं किया था।

डा. गुलाटी सरकारी खर्च में मितव्ययता का भी बहुत ध्यान रखते थे। एक बार संस्थान में रविवार के अवकाश के दिन आयोजित बिजीनेस एवं वित्तीय समिति की एक बैठक में हमारे वरिष्ठ वित एवं लेखाधिकारी ने हमें व हमारे वरिष्ठ साथी श्री शान्तिस्वरूप स्याल को भी बुलाया था जिससे समिति के किसी सदस्य द्वारा चाही गई जानकारी में हमारी सहायता ली जा सके। हम अपने वरिष्ठ अधिकारी के साथ थे। डा. गुलाटी भी बैठक से पूर्व हमारे निकट आये। हमारे वरिष्ठ अधिकारी को वह एक कोने में ले गये और उनसे बात की। बाद में हमें पता चला कि वह हम दो जूनियर साथियों के बारे में व्यवस्था के संबंध में पूछ रहे थे और वह बात मितव्ययता से संबंध रखती थी। हमने उनकी बात को सकारात्मक रूप में ही लिया था। इसके बाद एक बार मितव्ययता से संबंधित एक घटना और हुई। हमारे एक वरिष्ठ अधिकारी ने हमें बुलाकर बताया कि वह एक दिन पूर्व किसी डाक्टर से अपनी धर्मपत्नी से संबंधित चिकित्सीय परामर्श लेने गये थे। डाक्टर ने उन्हें एक्स-रे का परामर्श दिया गया था। उन्होंने प्राइवेट लैब से एक्स-रे कराया जिसके लिए उन्हें अधिक भुगतान करना पड़ा। हमारे यह अध्किारी डा. गुलाटी के पसन्दीदा अधिकारी थे, यह उन्होंने ही हमें एक बार बताया था और उसकी पृष्ठभूमि भी बताईं थी। हमारे अधिकारी महोदय ने हमें उस पूरी धनराशि के भुगतान की स्वीकृति के लिए एक नोट लिखने को कहा। हमने लिखा और उन्होंने अपने हस्ताक्षर कर वह नोट निदेशक को स्वीकृति हेतु भेज दिया। वहां से वह नोट स्वीकृत होकर आया जिस पर डा. गुलाटी ने लिखा था, Approved, but I think that we reimburse X-Ray charges equivalent to Hospital charges. नोट आने के बाद हमारे वरिष्ठ अधिकारी जो हमसे बहुत स्नेह रखते थे, हमें बुलाया और अपनी खीज मिटाने के लिए कहा कि आपने यह नोट क्यों भिजवाया, हमारा मार्गदर्शन क्यों नहीं किया था? इसके बाद उन्होेने अपना देय भुगतान भी नहीं लिया। इसे डा. गुलाटी की मितव्ययता का उदाहरण कह सकते हैं।

एक और घटना स्मृति में आ गई है। एक बार एक महिला स्टेनों की चरित्र-पंजिका उनके अधिकारी ने अपने रिमार्क लिखकर उन्हें भेजी। वह आशुलिपिक डा. गुलाटी के साथ भी काम कर चुकीं थीं। विभागीय अध्यक्ष के रूप में उन्होंने टिप्पणी करते हुए चरित्र पंजिका में लिखा था कि ‘She may be a good steno but her knowledge of English grammer is poor.’ उनकी इस सन्तुलित टिप्पणी की हमारे एक मित्र बहुत प्रशंसा किया करते थे। उनकी सेवानिवृति से कुछ समय पूर्व एक बार हम अपनी कुछ समस्या लेकर संस्थान परिसर में ही स्थित उनके निवास पर गये। वह हमारे पहुंचने से कुछ समय पूर्व ही दिल्ली से आये थे। परिवार का कोई सदस्य भी निवास पर नहीं था। हमने उनसे कुछ बात करने का निवेदन किया। वह बोले कि मैं अभी दिल्ली से आया हूं, स्नान करने जा रहा हूं, स्नान कर लूं फिर इतमीनान से बातें करते हैं। इसके बाद फिर स्वयं ही बोले कि नहीं स्नान बाद में कर लूंगा, पहले आपसे बात कर लेते हैं। उन्होंने स्वयं पास से दो कुर्सिया खींच कर बालकनी में रखी और हमें बैठा कर इतमीनान से हमारी बातें सुनी और हमारी समस्या को हल करने का आश्वासन दिया। उनका रिटायरमेंट निकट था और संस्थान में वातावरण अनुकूल नहीं था, अतः हमारा वह कार्य नहीं हो सका। तभी से हम डा. गुलाटी के स्वभाव व व्यवहार के कायल हो गये थे। वह एक सच्चे व ईमानदार तथा योग्य वैज्ञानिक थे जिन पर गर्व किया जा सकता हे।

डा. गुलाटी के समय में आईआईपी संस्थान में अनेक नई तकनीकियों का विकास हुआ जो बाद में उद्योग जगत को उपयोग हेतु प्रदान की गईं जिससे संस्थान की प्रतिष्ठा में चार चांद लगे। यह भी उल्लेख कर दें कि आईआईपी स्थापना में फ्रांस के एक संस्थान आईएफपी (Institute of France du Petrol -IFP) का महत्पूर्ण योगदान था। इसके पहले निदेशक भी फ्रांस के डा. वेटेकर थे। उनके बाद डा. एम.जी. कृष्ण निदेशक बने और उनके जाने के बाद डा. आई.बी. गुलाटी 4 जून, 1974 को निदेशक बने थे और 31 दिसम्बर, 1985 को आप आईआईपी से ही सेवानिवृत हुए।  आईआईपी से सेवानिवृति के बाद भी उन्होंने पेट्रोलियम जगत की सेवा की। उन्हें पेट्रोल जगत का एक कर्मयोगी कहा जा सकता है जहां विज्ञान व तकनीकि के क्षेत्र में उन्होंने अपने पुरुषार्थ से सफलतायें प्राप्त कर देश व समाज की प्रशंसनीय सेवा की।  उनकी कल 6 जनवरी, 2016 को 90 वर्ष की आयु पूर्ण कर मृत्यृ हुई। हम उन्हें अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और ईश्वर से दिवंगत आत्मा की शांति व सद्गति की प्रार्थना करते हैं।

मनमोहन कुमार आर्य

 

4 thoughts on “वैज्ञानिक डा. आई.बी. गुलाटी जी विषयक कुछ स्मृतियां

  • विजय कुमार सिंघल

    मान्यवर, डॉ गुलाटी जी के साथ के आपने संस्मरण पढ़कर अतीव आनंद और संतोष का अनुभव हुआ. ऐसे सहृदय वैज्ञानिक बहुत कम होते हैं. उनके साथ कम करना भी बहुत बड़ा सौभाग्य है.
    उनको मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !

    • Man Mohan Kumar Arya

      नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री विजय जी। मेरा सौभाग्य है कि मुझे जीवन में बहुत अच्छे वा सहयोगी इंसान मिले। ईश्वर का इसके लिए धन्यवाद है। कल डॉ. विवेक आर्य देहरादून आ रहे हैं। उनसे लगभग आधा घंटे की भेंट होने की सम्भावना है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मनमोहन भाई , डाक्टर गुलाटी के बारे में पड़ा कि वोह ६ जनवरी को स्वर्गवास हो गए ,पड़ कर दुःख हुआ हुआ. किओंकि आप तो उन से बहुत निकट रहे हैं और उन की बहुत यादें आप कभी भूल ही नहीं सकते .मैंने सारा पड़ा , मैंने जान लिया कि वोह बहुत महान विअकती थे .मेरा उन को कोटि कोटि नमन .

    • Man Mohan Kumar Arya

      नमस्ते एवं हार्दिक धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। आपने लेख पढ़ा और सहानुभूति एवं संवेदना से पूर्ण विचार सूचित किये, इससे सांत्वना मिली। डॉ. गुलाटी एक बहुत नेक इंसान थे और समर्पित व्यग्यनिक थे। उनके इसी गुण ने मुझे यह लेख लिखने के लिए प्रेरित किया। पहले मैं इसे अपलोड करने में संकोच कर रहा था। परन्तु बाद में साहस बटोर कर अपलोड कर दिया। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।

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