कविता

पीली चूडियाँ

मेरे हाथ की ये पीली चूड़ियाँ
नींद में भी मुझे जगाती हैं
कभी खट्टी, कभी मिट्ठी नींद सुलाती हैं
मेरे हाथ की ये पीली चूड़ियाँ
कभी मेरी कलाई के सहारे
खनक-खनक कर पुकारे
कभी ठहर कुछ देर
मेरी कलाई पर ही आराम करती हैं
कभी खूब शोर मचाती हुई
इन साँसों में उत्तेजना भरती हैं।
मेरे प्रीतम की भी हैं प्रिया
मेरे हाथ की ये पीली चूड़ियाँ
नींद में भी मुझे जगाती हैं
कभी खट्टी, कभी मिट्ठी नींद सुलाती हैं
मेरे हाथ की ये पीली चूड़ियाँ

जहाँ जाती, वहाँ आती चूड़ियाँ
मैं दूल्हा, तो मेरी बाराती चूड़ियाँ
कभी तो ये चूड़ियाँ, आपस में ही
मिलकर कानाफूसी करती हैं
कभी पड़ोसन के हाथों में सजी
गुलाबी चूड़ियों से जलती हैं
सखी हैं लाल-पीली-नीली चूड़ियाँ
नींद में भी मुझे जगाती हैं
कभी खट्टी, कभी मिट्ठी नींद सुलाती हैं
मेरे हाथ की ये पीली चूड़ियाँ

कभी हाथापाई भी करती हैं
सहमी तो खनकने से भी डरती हैं
गुस्से से हाथ कभी पटक दूँ
तो दु:ख से टूट बिखर जाती हैं
कभी तो पूरी बाँह पर
खुशी से नाचती नज़र आती हैं
सु:ख-दु:ख के आँसुओं से गीली चूड़ियाँ
मेरे हाथ की ये पीली चूडियाँ

नींद में भी मुझे जगाती हैं
कभी खट्टी कभी मिट्ठी नींद सुलाती हैं
मेरे हाथ की ये पीली चूड़ियाँ
नई चूड़ियों को देखकर
खुद ही हाथ से जाती उतर
मेरी ये पीली चूडियाँ
चुपचाप श्रृंगारदान में चली जाएं
“काँच की मैं और माटी की तू”
अंत में बस इतना ही बतलाएं।
क्यों मुझसे ये मिली चूड़ियाँ
मेरे हाथ की ये पीली चूड़ियाँ ?

— नीतू सिंह

 

*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल n30061984@gmail.com

2 thoughts on “पीली चूडियाँ

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता !

    • नीतू सिंह

      शुक्रिया

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