कहानी

कहानी : टूटती परम्पराएँ

सुधीर का विवाह हुए लगभग एक वर्ष होने को था | सुधीर व उसकी पत्नी प्रिया एक दूसरे से अंजान ही बने रहे,धीरे-धीरे घरवालों को भी इसकी जानकारी हो चुकी थी | सुधीर व प्रिया का विवाह उनके माता-पिता की मर्जी से हुआ था विवाह में उन दोंनो की राय नहीं ली गई थी | दोंनो ने स्नातकोत्तर तक पढ़ाई की हुई थी | सुधीर  प्राईवेट सेक्टर में जॉब करता था उसे साठ हजार रुपये मिल जाते थे | प्रिया के घर वाले भी दोंनो के कैसे संबन्ध हैं, अंजान नहीं थे | कुछ दिनों के लिए प्रिया जब अपने घरवालों से मिलने गई तो सुधीर के माता-पिता ने सुधीर से पूछा -अरे सुधीर ! ये आखिर कब तक चलेगा ? तुम और बहू आपस में ठीक ढँग से नहीं रहते , ये हमें पता चल चुका है | माता-पिता की बात सुन सुधीर बिन बोले वहाँ से चुपचाप चला जाता है |

ठीक ये ही बात,प्रिया की माँ ने प्रिया से कही | प्रिया की माँ को प्रिया के प्यार के बारे में सब कुछ पता था | वह उसी शहर के एक लड़के से प्यार करती थी जो उसका क्लास साथी था| प्रिया ने दुखी होकर माँ से कहा – माँ आप लोगों ने मेरी शादी कर दी, मैंने कुछ नहीं कहा,अब आप क्या चाहते हो ? मैं दुखी रहूँ या सुखी, इससे तुम्हें क्या ??”

“नहीं बेटी नहीं, ऐसा मत बोलो हम तेरे माँ बाप हैं, तुम्हें दुखी देखकर हम सुखी कैसे रह सकते हैं”
“माँ, मैं सुधीर के साथ खुशी नहीं रह सकती और वो भी मेरे साथ…” माँ उसकी बात सुनकर विचारों में खो गई |

सुधीर ने जब जबाव नहीं दिया तो पिताजी ने सुधीर के मित्र सहगल को बुलाया और उससे एकान्त में पूछा – अरे सहगल ! बता कि ये सुधीर का क्या मामला है ? वो बहू के साथ ठीक ढँग से नहीं रहता, गुमशुम रहता है, पूछते हैं तो जबाव नहीं देता ? तू अपने मित्र से पूछकर बता आखिर मामला क्या है ??”

“अंकल जी मुझे कुछ-कुछ मालुम तो है परमैं ठीक से सुधीर से पूछकर आप को बताता हूँ ” सहगल ने कहा |

“ठीक है बेटा-जल्दी पूछकर बताना हम परेशान हैं | इकलौता बेटा जो ठहरा, क्या करें !”

कुछ दिन बाद प्रिया अपने ससुराल बापस आ गई | घर में माहौल गुमसुम ही बना रहा | एक दिन सुधीर के पिताजी को सहगल बाजार में मिल गया | सहगल ने कहा – “अंकल जी, मैंने सुधीर से बात की तो उसने बताया कि मैं प्रिया के साथ नहीं रह सकता यहाँ तक कि प्रिया भी मेरे साथ मजबूरी में रह रही है | हम दोंनो ने अपने -2 माता-पिता की रजामंदी पर विवाह किया है न कि अपनी मर्जी से…हम दोनों अपने माता-पिता से कह भी नहीं सकते और सुखी रह भी नहीं सकते, अब जैसा भाग्य में लिखा है भोगेंगे | आज सुधीर के पिता को अपनी गलती का अहसास हुआ कि मैंने विवाह के समय अपने बेटे से एक बार भी नहीं पूछा कि बेटा तू राजी भी है इस शादी से |

पर बहू वाली बात समझ में नहीं आ रही थी  कि बहू राजी क्यों नहीं है | तो सहगल ने कहा – “अंकल जी जिस प्रकार सुधीर किसी लड़की से प्यार करता है ठीक उसी प्रकार प्रिया भी किसी लड़के को अपना मीत बना चुकी थी दोनो अपनी-2  शादी का वादा किए हुये थे पर दोनों अपने माता-पिता की मर्जी के आगे कुछ नहीं कर सके |  वे दोनों लड़का व लड़की इन दोनों का आज भी इंतजार कर रहे हैं |”

सुधीर के पिताजी के सबकुछ समझ में आगया था | घर जाकर, अपनी पत्नी को बताया और निर्णय किया की प्रिया के माता-पिता को गुपचुप ये बातें बताई जाये जिसका सुधीर व  प्रिया को पता नहीं चलना चाहिए |  सायं शहर के नियत स्थान पर प्रिया के माता-पिता को बुलाया गया| चारों के बीच गहन चर्चा हुई | सुधीर के पिताजी ने कहा – हमें अपने बेटे व बेटी के जीवन के साथ खिलबाड़ करने का हक नहीं है, हम आज भी उनकी शादी उनके अनुसार करने में उनका सहयोग कर सकते हैं |

“ये बात, आप कह सकते हैं मैं कैसे कह सकता हूँ, मैं बेटी का बाप जो ठहरा, प्रिया के पिताजी ने कहा, मेरी तो बदनामी हो जायेगी |”

ये सुनकर प्रिया की माँ ने कहा – भाड़ में जाये तुम्हारी बदनामी ! मैं तो बेटी के दुख को देख नहीं सकती , प्रिया के ससुर ठीक कह रहे हैं अगर इन दोनों की शादी अब भी उनके अनुसार कर दी जाये तो हम अपनी गलती सुधार सकते हैं अत: हम सब को उनका सहयोग करना चाहिए | कुछ दिन बाद प्रिया व सुधीर की कोर्ट- मैरीज उनके इच्छित लड़के व लड़की से करा दी गई | आज सभी प्रसन्न दिखाई दे रहे थे…

विश्वम्भर पाण्डेय ‘व्यग्र’

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र' कर्मचारी कालोनी, गंगापुर सिटी,स.मा. (राज.)322201

2 thoughts on “कहानी : टूटती परम्पराएँ

  • विश्वम्भर पाण्डेय 'व्यग्र'

    धन्यवाद !

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कहानी !

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