गीत/नवगीत

नापाक इरादों पर

रहा नहीं अब शक कोई उनके नापाक इरादों पर
ना करो भरोसा बार-बार हमसाए के झूठे वादों पर

जितनी बार हाथ दोस्ती वाला हमने बढ़ाया है
उतनी बार हमारी पीठ में इसने छुरा घुसाया है

ना रखो उम्मीद शराफत की ये मन के काले हैं
ये लातों के भूत नहीं बातों से मानने वाले हैं

पैगाम दोस्ती के हमने जब भी इनको भिजवाए हैं
बदले में इन्होंने आंतकी हमले करवाए हैं

लेकिन अब हद पार हो गई है अपनी भी सहने की
कोई भी हो सीमा होती है सबकी चुप रहने की

कितनी दफा माँ भारती खून के आँसू रोएगी
अपने बच्चों की लाशें अपने कँधे पर ढोएगी

कबतक थोड़े से जुगनू सूरज को आँख दिखाएँगे
कबतक हम इन कुत्तों पर शेरों की बलि चढ़ाएँगे

कभी ना सुधरेगा ये देश अपनी आदत का मारा है
पठानकोट में आके इसने फिर हमको ललकारा है

दो इजाज़त सेना को अब ना थोड़ी भी देर करो
इन आतंकवादियों को उनके ही घर में ढेर करो

एक ही बार में रोज़-रोज़ का खत्म ये बवाल करो
उनकी सड़कें उनके ही नापाक खून से लाल करो

— भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]

One thought on “नापाक इरादों पर

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा गीत ! आज हर देशवासी यही सोच रहा है.

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