कविता

कील पर टंगा दिल

कील पर टंगा दिल

 

एक कील पर दिल टांग रखा है
जिसके फ्रेम में तुम्हारी तस्वीर टंगी है।
बार-बार पोंछती हूँ दिल अपना
और तुम्हारा चेहरा, साफ़ कर लेती हूँ।

 

तुम गलतियाँ तो कुछ नहीं करते
पर मैं मान लेती हूँ
फिर खुदी को समझाती हूँ
और खुदी तुम्हें, माफ़ कर लेती हूँ।
बार-बार पोंछती हूँ दिल अपना
और तुम्हारा चेहरा, साफ़ कर लेती हूँ।

 

दिन-ब-दिन तस्वीर पुरानी पड़ती है
पर दिन-ब-दिन रंग भरती हूँ
दिन-ब-दिन नया करती हूँ
पुराने रिश्ते का यों, नया आगाज़ कर लेती हूँ
बार-बार पोंछती हूँ दिल अपना
और तुम्हारा चेहरा साफ़ कर लेती हूँ।

 

साफ़ कर लेती हूँ चेहरा तुम्हारा
मगर अपना भूल जाती हूँ
गलतियाँ तुम्हीं तो नहीं करते
क्यों न माफ़ी की मैं भी, फ़रियाद कर लेती हूँ
बार-बार पोंछती हूँ दिल अपना
और तुम्हारा चेहरा, साफ़ कर लेती हूँ।

 

खूंटी पर टंगा हुआ दिल
कभी-कभी धड़क भी पड़ता है
शिकवे-गिले मिटाकर उतारती हूँ
और अपने सीने में सजा, आबाद कर लेती हूँ
बार-बार पोंछती हूँ दिल अपना
और तुम्हारा चेहरा, साफ़ कर लेती हूँ।

 

*****

*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल [email protected]

2 thoughts on “कील पर टंगा दिल

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब ,वाह वाह वाह .

    • नीतू सिंह

      शुक्रिया

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