गीतिका
मापनी -221 2122 221 2122
चाह
बाँधों न हमें तुम ,कोयल हमें सुनाती ।
आज़ाद हैं हमें बस ,बातें यही लुभाती ।
पँछी कहाँ थमें हैं ,ये तो उड़ान भरते
देखें न ज़ख्म इनको ,संघर्ष राह भाती ।
चाहे मिले न रोटी ,परवाह यह नहीं है
रोटी मगर हमें तो ,पिंजरे कहाँ सुहाती ।
टूटे कभी घरोंदा ,दूजा सजाए हम फिर
सीखा यही बड़ों से ,अड़चन हरा न पाती ।।।
कामनी गुप्ता ***