यहाँ ये आम आदत है
पराये हो गए बेशक़ मग़र दिल में मुहब्बत है।
चले आओ खयालों में तुम्हें हर पल इज़ाज़त है।
हुआ है बाप चुप, बेटा ज़रा नज़रें मिला बैठा,
वहाँ डर की जगह पे दिख गई उसको बग़ावत है।
बड़ी इज्ज़त बड़ी शोहरत बड़ा है नाम अब मेरा,
मुझे जो भी मिला है सब मिला माँ की बदौलत है।
उधर ही बेइमानी है जिधर डालो नज़र अपनी,
बुराई दाल जैसी है नमक जैसी शराफ़त है।
चले आना यहाँ कल फिर अगर ये टाल दें तुमको,
मियां ये काम सरकारी यहाँ ये आम आदत है।
–प्रवीण श्रीवास्तव ‘प्रसून’
फतेहपुर उ.प्र.
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