कविता : ईश विधान
रास्ते रोज के जाने पहचाने
जिंदगी ख़्वाबों को सजाने
नई मंजिल पाने के लिए
नई राह जोड़ने चल दी ।
नए पलों को न मालूम था
ईश का विधान
क्या होने वाला है
अनहोनी होनी हो गई
कार दुर्घटना की दस्तक ने
तन – मन को घायल कर
दुखों की खूनी सुनामी बहा दी ।
लाचारी , विकलांगता ने
सृजना की दास्तां गढ़ दी
काल कष्टों से कलवरित
पतझड़ी पड़ाव
ठूंठ जीवन का
कालखंड
मानवीय करों के संग
सेवा , करुणा , प्यार
जीवन का हमदम बन
बसंती बहार ले आया ।
खुशियों की ऋतु चहकने लगी
कष्टों , दुःख ,पीड़ा की अमावस्या
पूनम की चांदनी बिखेर रही
जीवन की हर सांस
मानव सेवा गुनगुनाने लगी
ईश गुण ‘ मंजु ‘ गाने लगी