तजुर्बा
मेरी कविता नही करती
सामाजिक सरोकार की बात
ये नही ढूँढती
आर्थिक समस्याएँ
बढ़ रहे चोर
काले सफेद या और
मेरी कविता ने नही देखा
ढ़ाबे पर
बर्तन धोता
नन्हा बच्चा
ना तजुर्बेकार है
मेरी कविता
वो अभी भी
करती है
उस निगाह की बात
जो मनचली
तितली के पीछे
उडती फिरती है ..!!
— रितु शर्मा
अच्छी कविता !