कविता

तमाशा और लोकतंत्र !

चौराहे पर टंगा
एक पोस्टर
चिल्लाता रहा
रोजगार की गारंटी
कमबख्त
वक्त की नजाकत
उसके नीचे
मजदूरों का हुजूम
भूखा खड़ा
था
कभी कभी
तो ऐसे
हालात आते हैं
जब कुछ लोग
सर्द रातों
में
खुले आसमान
के नीचे
सो जाते हैं
कुछ जी जाते हैं
कुछ अमर हो
जाते हैं……
लोकतंत्र फटकार
लगाता है
और
तमाशा करने
वाले मजा
लूट ले जाते हैं
लूट ले जाते हैं…….

के. एम्. भाई
दूर.- 8756011826

के.एम. भाई

सामाजिक कार्यकर्त्ता सामाजिक मुद्दों पर व्यंग्यात्मक लेखन कई शीर्ष पत्रिकाओं में रचनाये प्रकाशित ( शुक्रवार, लमही, स्वतंत्र समाचार, दस्तक, न्यायिक आदि }| कानपुर, उत्तर प्रदेश सं. - 8756011826

One thought on “तमाशा और लोकतंत्र !

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

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