ग़ज़ल
इश्क की आग में इक बार जल के देखते हैं,
पहलू-ए-यार में हम भी मचल के देखते हैं
जिंदगी कट ना जाए इंतज़ार में ही कहीं,
वो तो आएगा नहीं हम ही चल के देखते हैं
साफगोई ने तो सब छीन लिए दोस्त अपने,
दुनिया के जैसे अब लहजा बदल के देखते हैं
बहुत दिन रह लिए आँखों में ख्वाब की तरह,
उसके आँसूओं में आज ढल के देखते हैं
हमारे कदमों की आहट से उठेगा तूफां,
सारे एक साथ में घर से निकल के देखते हैं
चाँद आया है खुद महफिल में आज सुनने को,
करिश्मे हम भी अपनी गज़ल के देखते हैं
— भरत मल्होत्रा