बिखर गया
मेरे जीवन का रंग बदल गया।
अश्रु-बन एक – एक कतरा बह गया।
था मैं पहले आदमी बहुत सही।
अब अपनों के बीच विखर गया।सपनों का जाल हो गया तार – तार।
करता रहा प्रयास बढने का लगातार।
फंस करके अपनों के बीच यही।
बदल गया मेरे जीवन का आकार।आते गये नये होते गये पुराने।
देते गये सिला बुनते गये तराने।
जरुरत थी तो साथ देते गये।
पुरी हुई जरूरतें, बदलते गये निगाहें।
@रमेश कुमार सिंह /२५-०९-२०१५@