लघुकथा

समर्पण

,कौन हो तुम ! क्यों नेहा के घर में चोर की तरह घुसे हो!

मीरा काकी ने उस अनजान आदमी के सर पर पीछे से वार कर के नेहा को उसकी गिरफ्त से छुड़ाते हुए कहा।

,अचानक मीरा काकी को अपने सामने देखकर नेहा के तो जैसे जाते हुए प्राण ही वापस आ गए। मौका पाकर अनजान आदमी भाग खड़ा हुआ। नेहा ने मीरा काकी को पूछा ” आपको कैसे पता चला कि मेरे घर में कोई घुस गया है?,

तभी पडौस की तारा भौजी ने घर में घुसते हुए कहा” नेहा तुम अभी इस मौहल्ले में नई किरायेदार आयी हो, इसलिए तुम्हे कुछ पता नही । हमारी मीरा काकी बरसो से पूरे दिन और पूरी रात अपनी पैनी निगाह इस मौहल्ले के घरो पर रखती है।
इनका समर्पण देखते ही बनता है।, बस यह अपने परिवार को ही नही बचा पायी चन्द जालिमो ने कुछ रुपयो पैसो के चक्कर में परिवार को उजाड़ दिया।

— शान्ति पुरोहित

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

One thought on “समर्पण

  • मनजीत कौर

    अगर सब की सोच मीरा काकी जैसी हो जाये और मुसीबत के समय इंसान एक दूसरे की मदत करे तो कोई भी जालिम किसी के घर को कभी भी उजाड़ न पायेगा| बहुत सुन्दर लघु कथा के लिए आभार |

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