गिर कर सम्हलने की आदत है मुझको..
गिर कर सम्हलने की आदत है मुझको।
ख़िजा में भी पलने की आदत है मुझको॥
मुझे रोशनी कब मिली इस जहां में।
अंधेरों मे चलने की आदत है मुझको॥
में सदियों से यूं ही छला जा रहा हूं।
हर एक दौर छलने की आदत है मुझको॥
मेरे जागने को न बेचैनी समझो।
करवट बदलने की आदत है मुझको॥
वो कल रोक देगें मेरी राह फिर से।
रस्ते बदलने की आदत है मुझको॥
मेरे दर्द ओ ग़म की न परवाह करना।
यूं ही जीने मरने की आदत है मुझको॥
मैं मरता हूं हर रोज कितनी ही मौतें।
ग़मों से गुजरने की आदत है मुझको॥
सतीश बंसल
मजेदार .