मुक्तक/दोहा

दोहा

दोहे….

कल्पन अब जीवन बना, कल्पन ही विश्वास।
कल्पन से मिलती मुझे, नित चलने की आस।-1

काव्य इशारों की कला, समझो इसका सार।
एसे वाद विवाद से, बचे सँदा परिवार।..2

रचना कवि की जान है, लगती पुत्र समान।
मिलकर उसको नेह दो, हो न सके अपमान।.. 3

रचना में अटकाव पर, अपने रखो विचार।
साबित करने के लिये, करो न तुम तकरार।…4

मिलकर हम आगे बढें, है इतना संकल्प।
सहनशीलता, धैर्य का, कोई नही विकल्प।…..5

सादर निवेदन/ सप्रेम

शिव चाहर मयंक
आगरा

शिव चाहर 'मयंक'

नाम- शिव चाहर "मयंक" पिता- श्री जगवीर सिंह चाहर पता- गाँव + पोष्ट - अकोला जिला - आगरा उ.प्र. पिन नं- 283102 जन्मतिथी - 18/07/1989 Mob.no. 07871007393 सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन , अधिकतर छंदबद्ध रचनाऐ,देश व विदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों , व पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित,देश के अनेको मंचो पर नियमित कार्यक्रम। प्रकाशाधीन पुस्तकें - लेकिन साथ निभाना तुम (खण्ड काव्य) , नारी (खण्ड काव्य), हलधर (खण्ड काव्य) , दोहा संग्रह । सम्मान - आनंद ही आनंद फाउडेंशन द्वारा " राष्ट्रीय भाष्य गौरव सम्मान" वर्ष 2015 E mail id- [email protected]

One thought on “दोहा

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    रचना कवि की जान है, लगती पुत्र समान।
    मिलकर उसको नेह दो, हो न सके अपमान। बिलकुल सही .

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