दोहा
दोहे….
कल्पन अब जीवन बना, कल्पन ही विश्वास।
कल्पन से मिलती मुझे, नित चलने की आस।-1
काव्य इशारों की कला, समझो इसका सार।
एसे वाद विवाद से, बचे सँदा परिवार।..2
रचना कवि की जान है, लगती पुत्र समान।
मिलकर उसको नेह दो, हो न सके अपमान।.. 3
रचना में अटकाव पर, अपने रखो विचार।
साबित करने के लिये, करो न तुम तकरार।…4
मिलकर हम आगे बढें, है इतना संकल्प।
सहनशीलता, धैर्य का, कोई नही विकल्प।…..5
सादर निवेदन/ सप्रेम
शिव चाहर मयंक
आगरा
रचना कवि की जान है, लगती पुत्र समान।
मिलकर उसको नेह दो, हो न सके अपमान। बिलकुल सही .