कविता

फ्लैट

जहां छत न हो, आंगन न हो,

बुजुर्गों से ड्योढी पावन न हो

उसे फ्लैट कहते हैं

 

जहां खाट न बिछती हो

जहां सीढ़ी न लगती हो

उसे फ्लैट कहते हैं

 

हाथ फैलाने की जगह न हो

छुपा-छुपी खेलने की वजह न हो

उसे फ्लैट कहते हैं

 

जहां न बारिश का पता चले

जहां न धूप उगे न ढले

उसे फ्लैट कहते हैं

 

जहां से अपने खेत न दिखे

बच्चे न चिल्लाए न चीखें

उसे फ्लैट कहते हैं

 

जहां केवल खुद से खुद का नाता हो

हर बात से पडोसी डिस्टर्ब हो जाता हो

उसे फ्लैट कहते हैं

 

जो बैंक के किश्तों में आता हो

जो बुढ़ापे तक अपना बन पाता हो

उसे फ्लैट कहते हैं

 

जो जन्म भर की कमाई हो

या फिर दहेज में आई हो

उसे फ्लैट कहते हैं

 

जो कभी एक हाथ में नहीं टिकता हो

जो रह-रहकर, रह-रहकर बिकता हो

उसे फ्लैट कहते हैं

जिसे तुम बढ़ा-घटा नहीं सकते

जहां सबको अटा नहीं सकते

उसे फ्लैट कहते हैं

 

जो तेरे-मेरे छोटे से दिल सा बड़ा हो

जिसे आधुनिकता के सांचे में गढ़ा हो

उसे फ्लैट कहते हैं

 

जो ज़रा फूंक से ताश के पत्तों सा ढह जाता है

एक पीढ़ी बाद जिसका बस अवशेष रह जाता है

उसे फ्लैट कहते हैं

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*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल [email protected]