कविता

कबीरी कुत्ते सी

राम की कबीरी कुत्ते सी हूँ
जित खींचते हैं तित चली जाती हूँ

जितना लड़ती हूँ उतना टूटती हूँ
इसलिए अब लड़ नहीं पाती हूँ
अब जैसी हूँ वैसी ही हूँ
या जैसी बना दो, बन जाती हूँ
मन नहीं हूँ, अब हृदय भी नहीं हूँ
मिट्टी के लौंदे सी चाक पर पाती हूँ
टूटती नहीं, अब बिखरती नहीं हूँ
क्योंकि जित खींचते हैं चली जाती हूँ

हज़ारों वर्षों से खुद को मैं
इस जेवड़ी से बंधा पाती हूँ
न टूटती है, न सड़ती है
है ऐसी जेवड़ी, गले लगाती हूँ
तोड़ने की की जो कोशिश
खा लात कूँ-कूँ कर रह जाती हूँ
इसलिए टूटती नहीं, अब बिखरती नहीं हूँ
क्योंकि जित खींचते हैं चली जाती हूँ

घर के चक्कर लगाती हूँ
घर वालों को चूमती हूँ, चाटती हूँ
बाहर का कोई छुड़ाए जेवड़ी तो
मैं उसी पर भूँकती हूँ, काटती हूँ
लक्ष्मण रेखा सी खींची जेवड़ी
कभी पार नहीं करने दी जाती हूँ
राम की कबीरी कुत्ते सी हूँ
जित खींचते हैं तित चली जाती हूँ

*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल [email protected]