कविता : तिरंगा
ऋषियोँ की पावन भूमि पर
जिस दुश्मन ने पैर पसारा है !
सर धड से अलग कर देँगे हम
जिस दुश्मन ने हमें ललकारा है ।।
बहुत सुन चुके धमकी उसकी
अब तो रक्त उसका बहाना है !
जान देकर वतन पर अपनी
कश्मीर पर “तिरंगा” फहराना है !!
हद को पार करता है वो जब
खून हमारा खोल जाता है !
युद्ध की हुंकार भरते हम जब …,
वो जड़ से दहल जाता है !!
अब की जो ललकारेगा वो
तो उसको हम बतला देँगे ।
हमें कसम है माँ भारती की
दुशमन को धुल चटा देंगे !!
काश मेरा भी खून आज ,
काम देश के आ जाता !
कसम मुझे है माँ भारती
मैं अपना शीश नवा जाता !!
— संजय कुमार गिरि