हे हिंदवासियों ! करना गणतंत्र का नव श्रृंगार
हे हिंदवासियों ! फिर से तुम्हें
करना देश का नव श्रृंगार
गणतंत्र दिवस का सपना
करना सबको साकार ।
आजादी को सींचा था
शहीदों की कुर्बानियों ने
जिनकी नींव पर टिका
देश का संवैधानिक प्रकाश – पटल ।
समता , सद्भाव , विश्वबन्धुत्व
मिली हमें सांस्कृतिक विरासत में
देश की समृद्धि , प्रगति हेतु
एकता की परिभाषा फिर से गढ़नी ।
न तोड़े कोई मठ , मन्दिर , गढ़
न आँख उठाए गजनवी लूटेरा
देश की धरोहर का करना सम्मान
फर्ज मान के करना इसकी सुरक्षा ।
स्वच्छ भारत अभियान के
तुम हो कर्णधार
करके साफ़ पुतले , इमारतों को
पढ़ना इनका जीवन दर्शन ।
है धर्म निरपेक्ष भारत
करे सब धर्मों का आदर
हर धर्म की पावन पोथी
मानव धर्म से रोशन ।
फिर बहे न धर्मान्तरण की सुनामी
न बहे कहीं नफरत की आंधी
निभाना ‘ विश्व मानवत्व ‘ तुम
बहाना हर मन में प्रेम सागर तुम ।
देश के रचनात्मक विकास हेतु
अभिव्यक्ति पर न मारे कोई सेंध
कलबुर्गी से न हो कहीं दहशत
असहिष्णुता न करे मनमानी ।
पर्व पर गूंज रहा राष्ट्र -गान
अनुगूँज से गूंजा वन्दे मातृम
गूंजा जयहिंद , जयहिंद से
गणतंत्र का नव विहान ।
— मंजु गुप्ता