मुरली
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मैं मुरली बा रास रचइया की
बाके अधरो पर रहती हूँ ।
मौसे सब जग बैर करत है
ज्यों बाकी सी कहती हूँ ।
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मौसो ना बडभागो कोई
मैं प्रेम को मेघ गिरावत हूँ ।
जब याद करे कान्हा राधे की
करूण टेर बन जावत हूँ ।
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फिरहु ना जाने राधा काहे
मौहे अपनी सौत बनाबत है ।
हम दौऊ हैं प्रान श्याम के
काहे समझ ना पाबत है ।
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अनुपमा दीक्षित मयंक
आगरा
भावपूर्ण कविता!!