एक नई कविता बनती है,
एक नई कविता बनती है,
यहाँ सुर्योदय से सुर्यास्त तक
सूर्य की किरणें बिखरती हैं,
एक फार्म हाउस में
एक नई कविता बनती हैं।
पीली सरसों
खेतों में चमकती हैं,
मैं भी लिखता हूँ,
एक नई कविता बनती हैं।
गायों के रंभाने को सुनकर
मेरी लेखनी चलती हैं,
गाँव की सुनहरी यादों में
एक नई कविता बनती हैं।
विशाल नीले आकाश में,
चिडि़यां स्वच्छन्द उड़ान भरती है,
मैं भी उड़ना चाहता हूँ
एक नई कविता बनती है।
दिन रात नजरों के सामने
सड़क पर गाडि़या दौड़ती हैं,
मुसाफिरों को देखता हूँ,
एक नई कविता बनती है।
आस-पास रेतीले टीलों पर
चिंटियों के पैंरो की छाप दिखती है,
उनकी मेहनत और एकता देखता हूँ
एक नई कविता बनती है।
श्वान और बकरीयों की आवाज
अपनी मोजुदगी का अहसास करती है,
मेरा ध्यान कुछ देर बंटता है,
एक नई कविता बनती है।
भोजन में दूध दही छाछ सम्मिलित होता
भोजन की थाली में माता की ममता दिखती है,
मैं वही स्वाद गृहण करता हूँ,
एक नई कविता बनती है।