गीत/नवगीत

गीत : हम गीतों को लिखते-गाते हैं

बिन सोचे हम कई काम बेहोशी में कर जाते हैं.
खुद-से-बेखुद पागल हम गीतों को लिखते-गाते हैं.

जितनी बार सब्जियाँ काटें
अपनी उँगली काटें.
आफिस में लापरवाही पर
मैनेजर भी डाँटें.
फिर भी अपनी नादानी पर हम हरदम मुस्काते हैं.
खुद-से-बेखुद पागल हम गीतों को लिखते- गाते हैं.

रोज बहाने मिलने के हम
कितने नये बनायें.
नहीं लगे डर अब यह कहते-
हम तुमको ही चाहें.
पल भर भी हम तुमसे मिलकर जाने क्या सुख पाते हैं.
खुद-से-बेखुद पागल हम गीतों को लिखते-गाते हैं.

 

कैसे रोकें, दिल के आगे
अपनी जरा न चलती.
अगर प्यार में नादानी हो
कैसे मानें गलती.
“धत-तेरे-की” कह नादानी बार-बार दोहराते हैं.
खुद-से-बेखुद पागल हम गीतों को लिखते -गाते हैं

*अर्चना पांडा

कैलिफ़ोर्निया अमेरिका

One thought on “गीत : हम गीतों को लिखते-गाते हैं

  • कैसे रोकें, दिल के आगे

    अपनी जरा न चलती.

    अगर प्यार में नादानी हो

    कैसे मानें गलती.

    “धत-तेरे-की” कह नादानी बार-बार दोहराते हैं.

    खुद-से-बेखुद पागल हम गीतों को लिखते -गाते हैं

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