कविता

टेबल का कीड़ा

मैं टेबल का कीड़ा

उठाता हूँ फाइलों का बीड़ा

मैं टेबल का कीड़ा

 

फाइलों की भीड़ में

पेपरों के नीड़ में

अपना घर बनाता हूँ

घर का अर्थ भुलाता हूँ

नहीं सुख न पीड़ा

मैं टेबल का कीड़ा

 

मैं ही कामधेनु गाय

इच्छा पूरी करती जाए

मैं मनु का रुप आज

कड़े नियम और काम-काज

दोनो हैं श्रद्धा और इड़ा

मैं टेबल का कीड़ा

 

यूहीं कभी किसी दिन

बिता जीवन फुरसत के बिन

हरी फाइल में जा खड़ा

दबा रक्तरंजित मृत पड़ा

जैसे पान का बीड़ा

मैं टेबल का कीड़ा

*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल [email protected]