मौलिक अधिकार
प्रिय सुनो जी
हूँ मैं गर्भ से
भ्रूण पलता है
तुम्हारा ही है
करना मत हत्या
बेटी तो क्या
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आओ आफिस से
प्यार लुटायेगी
हो रूखसत हमसे
फूल खिलायेगी
जीने का अधिकार
है नन्ही कली को
इसी से संसार रोशन
दुनियाँ में है लाना
सुन प्रिया बात मेरी
नहीं चाहता हत्या
पर डरता हूँ मैं
वहशी है बहुत दुनियाँ
पग पग पर दरिन्दें
कैसे बचाओ वजूद
सुनो पापा बात मेरी
ढाल तुम मेरी बनना
बन झाँसी शत्रुओं पर
टूट मैं निश्चित पडूगी
बन कल्पना चावला
उड़ान भर जाऊँगी
आभास हुआ बेटी
मुझे गलती का अब
जरूर ही तुझको आना है
इस धरती पर
समझ गया हूँ मैं
तुम नही हो बोझ
जीना है तुम्हारा
मौलिक अधिकार
— डॉ मधु त्रिवेदी