वफाओं से आखिर वे क्या चाहते हैं /गज़ल
जो देना तो उनको दगा चाहते हैं।
वफ़ाओं से आखिर वे क्या चाहते हैं?
जहाँ दे दिखाई, कोई शोख चितवन
तो चेहरा बदलकर, मिला चाहते हैं।
वे करते तो हैं सात जन्मों की बातें
मगर साथ हर दिन, नया चाहते हैं।
अभी थाम लेंगे वे जिसकी कलाई
ढले शाम उसीसे, छिपा चाहते हैं।
इन्हें क्या भला चाँद-तारों से मतलब
पतंगे ये जलती शमा चाहते हैं।
कहें कैसे नर इन कुटिल किन्नरों को
जो नारी को मय-सम पिया चाहते हैं।
बचें ‘कल्पना’ खुदगरज इन खलों से
कि जिनसे खुदा भी बचा चाहते हैं।
-कल्पना रामानी