अंतिम सत्य
अंतिम सत्य ……
होनी हैं मृत्यु निश्चित
फिर मनु ………
क्यों हो तुम द्वंद्व में
देख इस प्रलय को।।
ये परिवर्तन तो अरे !
महज थोथी कपूर हैं
जो बदल लेती हैं रूप नया
पाकर धूप हवा का संग
और घोल देती हैं अपनी
सुगंध धरा के उपवन में
फिर ऐसे ही निर्जीव सा
बैठा हैं तू भला क्यों ?
बना कोई प्रयोजन अहो !
निकाल कुछ सार अहो !
फिर किस्मत चमकेगी तेरी
होगा जब निर्माण नया
होगा फिर से नया सवेरा
गुंजित होगा गान नया
— अनमोल तिवारी ‘कान्हा’