गीत : प्रणय गीत गाऊँ मैं कैसे?
प्रणय गीत गाऊँ मैं कैसे |
बोले आतंक लहू की भाषा
हर मन बैठी आज हताशा
राजनीति डायन ने देखो
बदली जन-जन की परिभाषा
फिर मैं प्रीति जताऊँ कैसे |
प्रणय गीत गाऊँ मैं कैसे…
श्वांस-श्वांस से शोले निकले
आँखों से हथगोले निकले
एटमबम अब बना आदमी
ऐसे में क्या चाहे पगले
अपने प्राण बचाऊँ कैसे |
प्रणय गीत गाऊँ मैं कैसे…
मन बदले हैं ढंग बदले हैं
कदम कदम पर संग बदले हैं
समय बना गिरगिट के जैसा
पल -पल में वो रंग बदले हैं
फिर मैं तुम्हें रिझाऊँ कैसे |
प्रणय गीत गाऊँ मैं कैसे …
रिश्ते झूँठे हो गये सारे
हम अपनों से ही हैं हारे
बात-बात में स्वार्थ रमा है
द्वेष-भाव ने पाँव पसारे
प्रेम की बस्ती बसाऊँ कैसे |
प्रणय गीत गाऊँ मैं कैसे…
– विश्वम्भर पाण्डेय ‘व्यग्र’
गंगापुर सिटी (राज.)
बहुत खूब , रिश्ते झूँठे हो गये सारे
हम अपनों से ही हैं हारे ,किया सच्चाई है ,अपनों से ही सब हारते हैं .