ग़ज़ल
जब तक ना दिल दीवाना था,
हर इक गम से अंजाना था
अपनी मर्ज़ी के मालिक थे,
और कदमों तले ज़माना था
तब गीत बहारें गाती थीं,
मौसम भी बड़ा सुहाना था
तिरछी नज़र से लूट लिया,
कैसा गज़ब निशाना था
जिसको अपना समझा हमने,
गैर था वो, बेगाना था
ज़रा सी बात से टूट गया,
कैसा ये याराना था
आए ही थे क्यों मिलने जब,
वापिस लौट के जाना था
— भरत मल्होत्रा।