मेरा तमाशा
मैं तो देखने गई थी तमाशा
पर अब खुद ही तमाशा बनी हूँ।
कभी था दिया, राह के रोड़े को ठोकर
अब खुद ही कीचड़ से सनी हूँ
कल की मसली चींटी
आगे मेरे आज, तन रही है
गई थी भीड़ का हिस्सा बनने
अब भीड़ मुझ से, बन रही है
तमाशबीनों ने सवाल पूछा फिर वही
मैंने था पूछा जो औरों से कभी
हकबकाई सी खड़ी हूँ अब यहाँ
जवाब कुछ सूझे नहीं, आँख है डबडबी।
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